युद्धकालीन ब्लैकआउट (Wartime Blackout) एक महत्वपूर्ण नागरिक सुरक्षा उपाय है, जिसका उद्देश्य दुश्मन के हवाई हमलों से नागरिकों और महत्वपूर्ण संरचनाओं की रक्षा करना होता है। यह रणनीति विशेष रूप से 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान अपनाई गई थी, जब भारत के विभिन्न शहरों में नागरिकों को ब्लैकआउट अभ्यासों के माध्यम से तैयार किया गया था।
🕯️ युद्धकालीन ब्लैकआउट क्या है? | What is a Wartime Blackout?
युद्धकालीन ब्लैकआउट एक रणनीतिक उपाय है, जिसमें किसी क्षेत्र की सभी विद्युत रोशनी बंद कर दी जाती है ताकि दुश्मन के विमानों को लक्ष्य पहचानने में कठिनाई हो। इसमें घरों, सड़कों, वाहनों और सार्वजनिक स्थलों की सभी रोशनियों को नियंत्रित किया जाता है।

📜 ब्लैकआउट के नियम और प्रोटोकॉल | Rules and Protocols of Blackout
युद्धकालीन ब्लैकआउट के दौरान नागरिकों को निम्नलिखित नियमों का पालन करना होता है:
- वाहनों के लिए: हेडलाइट्स और टेल लाइट्स को काले टेप से ढकना या न्यूनतम रोशनी का उपयोग करना।
- घरों के लिए: खिड़कियों को मोटे पर्दों से ढकना ताकि कोई रोशनी बाहर न जाए।
- सार्वजनिक स्थानों के लिए: सड़क की लाइट्स को बंद करना या न्यूनतम रोशनी पर रखना।
- व्यवसायिक प्रतिष्ठानों के लिए: भीतर की रोशनी को इस प्रकार नियंत्रित करना कि वह बाहर न दिखे।
🕰️ प्रमुख ब्लैकआउट घटनाएं | Major Blackout Events
🇮🇳 भारत, 1965 और 1971
भारत में 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान बड़े पैमाने पर ब्लैकआउट अभ्यास किए गए। 1971 में, मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) ने लगातार 13 रातों तक ब्लैकआउट का पालन किया। पुणे में भी तीन रातों तक ब्लैकआउट अभ्यास किए गए, जिसमें नागरिकों ने अनुशासन और संयम का परिचय दिया।

🔑 ब्लैकआउट से निपटने के उपाय | Measures to Handle Blackouts
- ग्रिड का आधुनिकीकरण: स्मार्ट ग्रिड और स्वचालित सिस्टम का उपयोग।
- ऊर्जा भंडारण: बैटरी और अन्य भंडारण तकनीकों का विकास।
- विकेन्द्रीकृत ऊर्जा: स्थानीय स्तर पर ऊर्जा उत्पादन।
- आपातकालीन योजनाएं: सरकार और नागरिकों के लिए तैयार योजनाएं।
🕰️ 1962 के भारत-चीन युद्ध में ब्लैकआउट
1962 के युद्ध के समय चीन ने भारतीय सीमा के उत्तर-पूर्वी हिस्से में हमला किया था, विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख क्षेत्रों में। उस समय भारत ने कई सुरक्षा उपायों को लागू किया था, जिनमें ब्लैकआउट भी शामिल था।
ब्लैकआउट के प्रमुख पहलू:
- नागरिक सुरक्षा:
नागरिकों को यह निर्देश दिया गया था कि वे अपने घरों के खिड़की-दरवाजों पर मोटे पर्दे लगा दें, ताकि किसी भी प्रकार की रोशनी बाहर न दिखाई दे। - रोशनी की बंदी:
सड़कों पर और सार्वजनिक स्थानों पर लाइट्स को बंद कर दिया गया था, ताकि दुश्मन की हवाई ताकतें इसे निशाना न बना सकें। - आकस्मिक उपाय:
भारत सरकार ने सभी प्रमुख शहरों और सैन्य ठिकानों के आसपास ब्लैकआउट प्रोटोकॉल लागू किए थे। शहरों और सैनिक ठिकानों के आस-पास पूरी तरह से अंधेरा रखा गया था ताकि चीनी विमानों को लक्ष्य पहचानने में कठिनाई हो।
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ब्लैकआउट का उद्देश्य:
- हवाई हमलों से बचाव:
जब दुश्मन के हवाई हमले का खतरा हो, तो रोशनी को नियंत्रित करना एक प्रमुख सुरक्षा उपाय है। यह उपाय दुश्मन को भ्रमित करने और हमला करने से रोकने के लिए किया जाता था। - सैन्य सुरक्षा:
सैन्य ठिकानों और रणनीतिक स्थानों को छुपाने के लिए भी यह आवश्यक था। भारतीय सेना ने कई स्थानों पर ब्लैकआउट किया था ताकि चीन को हमारी सैन्य गतिविधियों का पता न चल सके।
ब्लैकआउट के परिणाम:
ब्लैकआउट ने उस समय चीन के हवाई हमलों से नागरिक और सैन्य संरचनाओं को बचाने में मदद की। हालांकि, युद्ध में भारत को चीन के खिलाफ कई मोर्चों पर असफलता का सामना करना पड़ा, लेकिन सुरक्षा उपायों के रूप में ब्लैकआउट ने अपने उद्देश्य को पूरा किया।
🧠 निष्कर्ष | Conclusion
युद्धकालीन ब्लैकआउट एक महत्वपूर्ण नागरिक सुरक्षा उपाय है, जो युद्ध के दौरान नागरिकों और महत्वपूर्ण संरचनाओं की रक्षा करता है। इसमें नागरिकों की सक्रिय भागीदारी और अनुशासन आवश्यक होता है। आज भी, जब भारत 7 मई को एक मेगा-सुरक्षा ड्रिल की तैयारी कर रहा है, यह अभ्यास नागरिकों को आपातकालीन स्थितियों के लिए तैयार करने में सहायक है।
1962 का भारत-चीन युद्ध एक कठिन समय था, और ब्लैकआउट जैसी सुरक्षा योजनाएँ उस समय के सैन्य और नागरिक बचाव के लिए आवश्यक थीं। इसने यह सिद्ध कर दिया कि युद्ध के समय रोशनी का नियंत्रण और सैन्य ढांचे की सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण होती है।
भारत में 1965 और 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्धों के दौरान बड़े पैमाने पर ब्लैकआउट अभ्यास किए गए। 1971 में, मुंबई (तत्कालीन बॉम्बे) ने लगातार 13 रातों तक ब्लैकआउट का पालन किया।